सुनील अग्रवाल / सुधांशु रंजन
Bihar Election 2020
पटना , 20 सितंबर। बिहार की राजनीति में तुफान थमने का नाम नहीं ले रहा है।एक ओर जहां महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर हाय तौबा मचा हुआ है वहीं एनडीए में दबाव की राजनीति हावी होती जा रही है। महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे आरजेडी ने तो घटक दलों को दरकिनार कर अंदर ही अंदर अपने उम्मीदवार भी तय करने शुरू कर दिये हैं, जिससे छोटे दलों में बेचैनी बढ़ती जा रही है। कांग्रेस के लिए भी अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं। जानकार बताते हैं कि भले ही कांग्रेस दावे कितने हीं कर ले, पचास सीट से ज्यादा मिलने से रहा। छोटे दलों के साथ सांप-छछूंदर जैसी स्थिति बनी हुई है।
विश्वस्त सूत्रों से मिल रही जानकारी पर गौर करें तो राजद ने अंदर खाने अपने उम्मीदवारों का चयन करना भी प्रारंभ कर दिया है। इसी क्रम में बारह उम्मीदवारों के नामों को अंतिम रूप दिया जा चुका है, जिससे उपेन्द्र कुशवाहा और मुकेश साहनी के सब्र का बांध टूटता जा रहा है। इन्हें इस बात का अहसास हो चला है कि जहां सीट शेयरिंग के मुद्दे पर अभी तक कोई चर्चा भी शुरू नहीं हो पाई है वहीं राजद ने अपने उम्मीदवारों का चयन करना भी शुरू कर दिया है। ऐसे में इन्हें यह डर सताने लगा है कि कहीं अंतिम क्षणों में उन्हें झुनझुना न थमा दिया जाय। जानकार बताते हैं कि राजद कांग्रेस के अलावा अन्य घटक दलों को ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नहीं है। जहां राजद कांग्रेस का हाथ थामे रखना चाहती है वहीं कांग्रेस की भी मजबूरी है कि वह राजद के साथ बनें रहें। सीट शेयरिंग के मामलों पर राजद और कांग्रेस के बीच बातचीत लगभग पूरी हो चुकी है, जबकि उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा को कांग्रेस की झोली में डाल दिया गया है। उपेन्द्र कुशवाहा को कितनी सीटें दी जानी है यह कांग्रेस तय करेगी। वहीं मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी को राजद अपने कोटे से सीट आवंटित करेगा।
जहां तक वामपंथी पार्टियों का सवाल है तो माले ने ५३ सीट पर अपना दावा ठोक दिया है,जो राजद को रास नहीं आ रहा है। ऐसे में वामपंथी पार्टियां अकेले चुनाव लड़ेंगी या महागठबंधन में शामिल होंगी,अभी तय नहीं हो पाया है।जाप पार्टी के पप्पु यादव अपना अलग ही राग अलाप रहे हैं। उनका मानना है कि वो बिहार को बचाने वास्ते महागठबंधन में शामिल तो होना चाहते हैं मगर उनकी शर्त है कि किसी दलित एवं पिछड़े वर्ग को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाय। इसके लिए उन्होंने कांग्रेस के समक्ष अपना प्रपोजल रखा है,जो राजद को पच नहीं पा रहा है। यूं भी पप्पु यादव लालू के घोर विरोधी माने जाते हैं।यह ओर बात है कि पप्पु यादव की पत्नी कांग्रेस में है और वह कांग्रेस से सांसद भी रह चुकी हैं। महागठबंधन में उपेन्द्र कुशवाहा की स्थिति ‘ना घर के रहे ना घाट के’ जैसी होकर रह गई है।दर असल एनडीए में उनकी इंट्री हो नहीं सकती,क्योंकि नीतीश कुमार को वो फुटी आंख नहीं सुहाते और महागठबंधन उनसे बात तक करने को तैयार नहीं। जहां तक वीआईपी पार्टी के मुखिया मुकेश साहनी का सवाल है तो निषाद,मल्लाह, साहनी जाति पर इनकी अच्छी पकड़ है।वे निषाद जाति के लिए बड़े नेता के रूप में उभरे हैं।
एनडीए भी उन पर डोरे डालने में लगी हुई है, जबकि मुकेश साहनी की निगाहें महागठबंधन के अन्तिम फैसले पर टिकी हुई है। इधर लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप अपने पुराने चुनाव क्षेत्र महुआ का परित्याग कर समस्तीपुर जिले के हसनपुर से चुनाव लड़ना चाहते हैं, जिसके लिए लालू प्रसाद से उन्हें हरी झंडी मिल चुकी है। गौरतलब है कि तेज प्रताप के खिलाफ जदयू से उनकी पत्नी ऐश्वर्या के चुनावी जंग में उतरने की पूरी संभावना है। मालूम हो कि ऐश्वर्या पूर्व मुख्यमंत्री दारोगा राय की पौत्री है और इन दोनों के बीच तलाक का मामला अदालत में लंबित है।। ऐश्वर्या के पिता चंद्रिका राय हाल ही में राजद का दामन छोड़ जदयू में शामिल हुए हैं।
इधर एनडीए में भी सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। लोजपा सुप्रीमो चिराग पासवान जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से रार- तकरार करने पर आमादा हैं वहीं भाजपा से दोस्ती भी निभाना चाहते हैं।एक ओर जहां वे बिहार सरकार के नीतियों पर खुलेआम प्रहार करते नहीं थकते वहीं दूसरी ओर केन्द्रीय योजनाओं की तारीफ करने में लगे हुए हैं। दरअसल चिराग के लिए यह कहावत शत प्रतिशत चरितार्थ होती है कि “कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना”। नीतीश के खिलाफ उनकी तल्खी सीटों को लेकर है। दरअसल चुनाव में वो मनचाहा सीट चाहते हैं,जो नीतीश कुमार को गंवारा नहीं। ऐसे में चिराग दबाव की राजनीति करने पर तुले हुए हैं।
जानकारों की मानें तो इसके पीछे भाजपा ही कोई चाल चल रही है,वरना गठबंधन का हिस्सा होते हुए चिराग मुख्यमंत्री पर इतना हमलावर नहीं हो सकते।असल में जदयू ने जिस प्रकार कांग्रेस और आरजेडी के विधायकों को अपने पाले में ला रहे हैं, इससे सीटों को लेकर उलझने बढ़ती जा रही है।साथ ही भाजपा फिफ्टी-फिफ्टी का मैंच खेलना चाहती है जबकि जदयू बड़े भाई के रूप में एक या दो सीट ज्यादा की चाहत रखती है। राजनैतिक पंडितों का मानना है कि अंदर खाना एनडीए में सीट शेयरिंग को लेकर बात पक्की हो गई है और आने वाला चौबीस तारीख एनडीए के लिए महत्वपूर्ण होगा।